BEBAK PARINDA
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बेबाक हूँ मैं, विचारों में आग लिए फिरती हूँ |
मत समझना कमजोर मुझे, ऐसा हौसला साथ लिए फिरती हूँ |
विनीता एक्का
परिंदा हूँ मैं, पूरा आसमाँ जिद मैं रखती हूँ |
बेबाक़ हूँ मैं, जुबाँ पर सच्चाई व इरादों में मंज़िल रखती हूँ ।
नेहा मंगलानी
ज़ब मंज़िल पाने की जो ठान लेता है बंदा |
बनना पड़ता है उसे इरादों से बेक़ाब परिंदा |
✍️ शेख अहमद जमाल मंसूरी
"ज़मी पर पाँव हैं और आसमान तकता है |
आत्मविश्वास यूँ ही आँखों में चमकता है" |
निहारिका सिंह
Compiler
Pritam Singh Yadav , Onkar R Tak
ISBN
9789390451043Publication House
Spectrum Of Thoughts
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