
KHAMOSHIYAAN
हर एक सन्नाटे में अक्सर कोई न कोई बात छुपी होती है ।
रात के सन्नाटे में वैसे क्या कुछ नहीं होता और हम गहरी सोच में पड़े खामोश सोचते रहते हैं। हम क्या कुछ नहीं बदल सकते अगर कोई बात मुँह से निकली भी हो तो भी, भीड़ में हम चुपचाप रहते हैं। हर वक्त हम खामोशी के साथ ही जुड़े रहते हैं , बस शब्द ढूँढ़ते रहते , ख़ामोशी से । समुद्र की लहरों से बना संगीत, सन्नाटे में ही सुनाई देता है और इसमें डूबकर हम कुछ देर बेसुध खड़े रहने से उस खामोशी को हम महसूस कर पाते हैं। मन में शांति भी तभी मिलती है जब मन स्पष्ट और रिक्त हो |
आत्ममंथन भी तभी कर सकते हैं जब हमारी ओर आने वाली हर शोर को रोक पाते हैं| कुछ तभी पढ़ सकोगे तभी जब माहौल खामोश हो, शांत हो। इस किताब में मेरी कुछ सोच और आकांक्षा , हताशा भी है मैं किसी वक्त में खामोश क्यों हूँ। चुप रहें लेकिन सतर्क रहें, खामोशियाँ आनंद है।