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Hasrat - e- izhar
ये नन्हा सा दिल न जाने क्या-क्या सोचता रहता है,
कभी कुछ कहने, कभी कुछ बयां करने को मचलता है।
एक झिझक सी हर पल मुझे क्यों यूँ रोक सी लेती है,
बता ना, ऐ दिल, इज़हार करने से क्यों यूँ मुझे टोक देती है।
बस जब भी अपने नन्हें से दिल की बात दूजे दिल तक पहुँचाने की हो क़वायद,
सुन! ऐ मेरे बेताब हृदय,
न रोक मुझे, न टोक मुझे,
करने दे इज़हार, है यही रवायत।
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